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December 18, 2021 - February 8, 2022
पाकिस्ता� रेडियो पर एक साक्षात्का� मे� अपना हाले-दि� उन्होंने कु� यो� बयां किया—‘शेर मोहम्म� खा� मै� कभी रह� ही नहीं। लिखन� और प्रकाशित होने की हद तक इब्न� इंशा ही रहा। स्कूली कागज़ो� मे� बेशक शे� मोहम्म� खा� ना� दर्ज रह�, अब तो वो भी नही�, लेकि� इस ना� से पुकारा कभी नही� गया। छठी� जमात से ही 11 सा� की उम्र मे� लिखन� शुरू कर दिया� गाँव से दू� लुधियाना के एक स्कू� मे� पढ़न� आया। जैसा कि होता है, छोटी जग� से बड़ी या नई जग� आन� पर तनहा� घे� लेती है, सो हम भी उससे घिरे और ‘मायूस आबादाबादी� होकर लिखन� लगे। स्कू� के एक शिक्षक ने कह�, ‘मायूस होना गुना� है, तु� अपना को� और ना� रखो।� फि� हमने कैसर
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गर� आँसू और ठंडी आहें मन मे� क्या-क्या मौसम है� इस बग़िया के भे� � खोलो सै� कर� ख़ामोश रह� और तो को� बस � चलेग� हिज़्र के दर्द के मारो� का सुबह का होना दूभर कर दे� रस्त� रो� सितारो� का दर्द का कहना ची� उठ� दि� का तक़ाज़� वज़’अ निभा�, सबकु� सहना चु�-चु� रहना का� है इजाज़त-दारो� का दि� हिज़्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहत� हो इस बा� से हमको क्या मतलब ये कैसे हो ये क्योंक� हो
एक ज़रा सा गोशा दे दो अपने पा� जहाँ से दू� इस बस्ती मे� हम लोगो� को हाजत एक मकाँ की है
उनसे बहार�-बाग़ की बाते� करके जी को दुखाना क्या जिनक� एक ज़माना गुज़रा कुंज�-क़फ़्स4 मे� रा�5 हु�