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साये में धूप [Saaye Mein Dhoop]
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ग़ज़� ये है कि अपनी मौ� की आह� नही� सुनत�, वो सब-के-सब परीशा� है� वहाँ पर क्या हु� होगा�
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इस नदी की धा� मे� ठंडी हव� आती तो है, ना� जर्ज� ही सही, लहरो� से टकराती तो है�