आचार्य चतुरसे�
Born
in बुलंदशहर [Bulandshahar], India
August 26, 1891
Died
February 02, 1960
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सोमनाथ [Somnath]
by
25 editions
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published
2009
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मेरी प्रि� कहानियां [Meri Priya Kahaniyan]
by
4 editions
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published
2012
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सोना और खू�
by
7 editions
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published
1950
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का� कल� के भे�
by |
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अन बन
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नीलमणि [Neelmani]
by |
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सोने का था� [Sone ka Thaal]
by |
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कहानी ख़त्� हो गई [Kahani Khatm ho Gayi]
by
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published
1996
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आभ� [Aabha]
by |
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बगुल� के पं� [Bagula Ke Pankh]
by |
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“अम्बपाली की यवनी दासी मदलेखा के निकट आई, उसकी लज्ज� से झुकी हु� ठोड़ी उठाई और कहा–‘‘कैस� इतना सहती हो बहिन, जब हम सब बाते� करते है�, हंसत� है�, विनो� करते है�, तु� मू�-बधिर-सी चुपचाप खड़ी कैसे रह सकती हो? निर्मम पाषा�-प्रतिम� सी! यही विनय तुम्हे� सिखाया गय� है? ओह! तु� हमार� हास्� मे� हंसती नही� और हमार� विला� से प्रभावित भी नही� होती�?’� रोहिणी ने आंखो� मे� आंसू भरकर मदलेखा को छाती से लग� लिया� फि� पूछा–‘‘तुम्हार� ना� क्या है, हल�?’� मदलेखा ने घुटनों तक धरती मे� झुकक� रोहिणी का अभिवाद� किया और कहा–‘‘देवी, दासी का ना� मदलेखा है�”
― वैशाली की नगरवधू [Vaishali ki Nagarvadhu]
― वैशाली की नगरवधू [Vaishali ki Nagarvadhu]
“महरी के पीछे-पीछे चो� दरवाज़� मे� घुसे� कमरो� के बा� कमरे, दाला� के बा� दाला�, सेहन के बा� सेहन पा� करते हु�, नौकरों, बाँदियों, लौंडियों और गुलामो� की सलामें लेते हु� आखिर बेगम के खा� कमरे मे� पहुँचे� सफेद चाँदनी का फर्श, चाँदी का तख्तपो� और को�, छत मे� झाड़ और हज़ारा फानू�, चाँदी की एक पलंगड़ी, कीमती बिल्लौ� की गो� मेज़ कमरे के बीचोंबीच।”
― धर्मपुत्�
― धर्मपुत्�